वोह उडता पंछी अपनी मंझील का
वोह राही कभी न रुकनेवाली राहोन्का
जमी हैं उसकी ..हैं उसका आसमान सारा
हैं वोह जुगनू ,अपनी धुंद मे दिवाना
न जाने कैसे एक दिन मेरे ..झरोके पे रुका
घिरे बादलोमे बरसते बुन्दो कि तरह
नझर से नझर मिली तो दिल बेहक गया
वोह मेहमा होते होते इश्क़ सा बन गया
खो बैठी जहा ..जाना सूद बुद गवाना
मेहफिलोन्मे सजने लगा उसीका तराना .....
पर वोह तो था उडता पंछी उडती फिझाओंका
कैसे समझ पाता इश्क़ ए दर्द वोह दिल का
सुबह होते ही उड गया ..
आन्सुओके साथ साथ राते भी खाली कर गया ..
वोह उडता पंछी अपनी मंझील का .........
No comments:
Post a Comment