मेरे पलन्कोकी छाव मे
जब् भी करती हु मे बन्द उन्हे
उतर आते हैं वोह् बनके नज़्मे
कुछ लम्हे हैं उनके मेरे पलन्कोकी छाव मे ।
कभी युहि हसाते हैं
कभी गुमसुम कर जाते हैं
कभी कुछ केहते हैं मुजसे
कभी कुछ केह्लवाते हैं
कुछ लम्हे हैं उनके
मेरे पलन्कोकी छाव मे II
कभी बारिश मै भिग जाते हैं
कभी साया सा बन जाते है
कभी अल्लड से बेहक जाते हैं
कभी बेहकनेसे टोकते हैं
कुछ लम्हे हैं उनके
मेरे पलन्कोकी छाव मे ।
उन्हे तो पाया नही हमने
पर इस लम्होसे जिते हैं
जीये कैसे ज़िन्दगि हसकर
अब इन्ही लम्हो से सिख्ते हैं
कुछ लम्हे हैं उनके
मेरे पलन्कोकी छाव मे ।
अस्मी
२०.१२.२०११
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