Thursday, 25 February 2016


From my blog ...



वोह मेरी हर कहानियोमे होता है ...कभी मेरा ख्याल बनके ...कभी मेरी नज़्म बनके ...पर में आजतक उसे पहचान नहीं पाई हु ..वोह यही है मेरे आसपास ..मेरे करीब ..इतने करीब के मेरी साँसों को छु जाता है वोह ..फिर भी अनजान हु  में उससे ..वोह एक ख्वाब बना रहता है..एक पहेली ..जिसे आज तक न में कोई आवाज़ दे पा रही हु न कोई चेहरा ...फिर भी वोह कानोमे गूंजता रहता है ...
कितनी बार कोशिश की मैंने के में उसे ढूढ़लू ...पर जब भी लगता है मैंने पाए लिया है उसे  वोह एक सुरूर बन जाता है ..हवासा ..धुँधलासा...जैसे कोई टुटा हुआ ख्वाब ...समेटने जाऊ तो जख्म पाती हु ...वोह आंधी बनकर निकल जाता है ...फिर एक बार अंजानासा...बिना पेहचानके ...
बस्स..अब तम्मना है मेरी एक बार ..एक बार उठ  जाये ये नक़ाब ..वोह चेहरा देखना चाहती हु में ...वोह आवाज़ बेनक़ाब सुनना चाहती हु में ..एक बार ...बस्स एक बार ....


अस्मि..