Thursday, 13 October 2011



एक वोह लम्हा था अंजानासा 
न जाने कहा खो गया ,
जिसमे कभी आप हमारे थे ,
वोह मोड न जाने कहा गया...
हम आज भी खोये है,
वही  चांद सितारो में,
सुलगती आहो  में,
आपके खयालो में,
वोह बेकरार समा,
न जाने  गुमसुम रह गया..........
अब पत्तोंसे उड रहे है राहो  में,
न ठिकाना  इस दिल का कोई रहा,
मुकाम अब पाने कि चाह नही ,
इस रूह मै  कोई आस नही,
एक तरसता किनारा था कभी 
न जाने कैसे बूज गया  .....
अस्मी 
१४.१०.११