एक वोह लम्हा था अंजानासा
न जाने कहा खो गया ,
जिसमे कभी आप हमारे थे ,
वोह मोड न जाने कहा गया...
हम आज भी खोये है,
वही चांद सितारो में,
सुलगती आहो में,
आपके खयालो में,
वोह बेकरार समा,
न जाने गुमसुम रह गया..........अब पत्तोंसे उड रहे है राहो में,
न ठिकाना इस दिल का कोई रहा,
मुकाम अब पाने कि चाह नही ,
इस रूह मै कोई आस नही,
एक तरसता किनारा था कभी
न जाने कैसे बूज गया .....
अस्मी
१४.१०.११